सागर-कभी पंक्चर बनाते थे Virender Kumar,साईकिल की दुकान से लालबत्ती तक का दिलचस्प सफर sagar tv news
संघ के सच्चे सिपाही और जमीन से जुडे़ सहज सरल नेता की छवि वाले केंद्रीय मंत्री डॉ. वीरेन्द्र कुमार को बुंदेलखंड के अजेय योद्धा के तौर पर भी जाना जाता है, क्योंकि अब तक वो जितने भी लोकसभा चुनाव लडे़ हैं, किसी में हार नहीं हुई और परिसीमन के कारण सागर सीट छोड़कर टीकमगढ़ जाना पड़ा, तो वहां भी झंडा गाड़ दिया. वैसे तो डाॅ वीरेन्द्र कुमार अर्थशास्त्र में पीजी और सागर यूनिवर्सटी से बाल श्रम में पीएचडी कर चुके हैं, लेकिन उनका बचपन काफी संघर्ष भरा बीता.
वीरेंद्र खटीक का जन्म 27 फरवरी 1954 को एक साधारण परिवार में हुआ. उनके पिता आरएसएस के समर्पित स्वयंसेवक थे, और परिवार के जीवन यापन के लिए सागर में उनकी एक साइकिल की दुकान थी. वीरेन्द्र कुमार अपने पिता की दुकान पर मदद के लिए साथ बैठते थे, संघ और एबीव्हीपी से छात्र राजनीति शुरू करने के बाद भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिला महासचिव बने और आपात काल का जमकर विरोध किया.
करीब 16 महीने जेल में काटे. जेल से आने के बाद वीरेन्द्र कुमार राजनीति में सक्रिय हो गए और भाजपा संगठन में कई अहम पदों पर काम किया. वीरेन्द्र कुमार पहली बार 1996 में आरक्षित सीट सागर से सांसद चुने गए और लगातार 2009 तक चार बार सांसद बने.
इसके बाद 2008 के परिसीमन से सागर सीट अनारक्षित हो गयी और टीकमगढ़ आरक्षित होने पर 2009 लोकसभा से टीकमगढ़ से चुनाव लड़ते और जीतते आ रहे हैं. साल 2017 में पहली बार मोदी सरकार में मंत्री बने थे, 2019 में प्रोटेम स्पीकर रहे, 2020 में भी फिर केंद्रीय मंत्री की सपथ ली थी, इस बार वीरेन्द्र कुमार फिर टीकमगढ़ में ताल ठोकते नजर आ रहे हैं.
वीरेंद्र कुमार आज भी साइकिल वाली की दुकान देखकर उसके साथ बैठ जाते है और पंक्चर बनाने के टिप्स देते हुए नजर आ जाते है, उनकी पत्नी का नाम कमला है, एक बेटा और तीन बेटियां है।