सागर -125 साल पुराने विद्यालय में नही होती रविवार की छुट्टी, वजह जानकर हैरान रह जाएंगे आप, देखिए
सागर के 125 साल पुराने विद्यालय में आज भी रविवार का अवकाश नहीं दिया जाता है यानि संडे की छुट्टी नहीं होती है, फिर भी यहां के छात्र खुश रहते हैं, जबकि देशभर के स्कूल कॉलेज दफ्तर सहित अन्य संस्थाओं में रविवार का मतलब हॉलीडे होता है. शहर के धर्मश्री इलाके में संस्कृत महाविद्यालय है, यहां गुरुकुल परंपरा के अनुसार तिथियों के हिसाब से छुट्टियां होती हैं, और इस तरह से एक महीने में 6 दिन के अवकाश होते हैं. मान्यता है कि गुरु शिष्य के ज्ञान के छरण को बचाने के लिए प्रतिपदा अष्टमी के साथ अमावस्या पूर्णिमा को अध्ययन नहीं कराया जाता है.
संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य उमाशंकर गौतम बताते हैं कि भारतीय संस्कृति में अनादि काल से जो वैदिक आर्ष परंपरा रही है. उस परंपरा, तिथियों के अनुसार ,नक्षत्र के अनुसार, समय काल के अनुसार कुछ नियम और विधान बनाए गए हैं. मनुष्य जीवन पर प्रत्येक परिस्थिति का चाहे वह भौगोलिक परिस्थितियों या सामाजिक परिस्थिति हो सबका अपना प्रभाव रहता है. इसलिए हमारे यहां जो अवकाश की व्यवस्था है, वह गुरुकुल परंपरा के अनुसार तिथियां के हिसाब से है.
गुरुकुल परंपरा के अनुसार प्राचीन काल से एक श्लोक भी चला आ रहा है...
अष्टमी गुरु हंत्री च शिष्य हंत्री चतुर्दशी
पूर्णिमा त्वा अमावस्या च, प्रतिपदा पाठ विनाशने
अर्थात अष्टमी तिथि के दिन अगर गुरु अपने शिष्यों को विद्या का अध्ययन कराता है. तो गुरु को हानि होती है, चतुर्दशी के दिन यदि शिष्य गुरु से विद्या विद्या का अर्जन करता है, तो शिष्य को हानि होती है. ऐसे ही अमावस्या पूर्णिमा और प्रतिपदा तिथि पर पाठ का अध्ययन करने पर नुकसान वाला होता है. यानी कि इन तिथि में पढ़ाई करने पर सिद्धि देने वाला फल नहीं होता है.
वर्ष-1898 में सागर में संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की गई थी. तब उसका नाम हिंदू संस्कृत पाठशाला था. इसकी स्थापना करने वाले पंडित गोविंद प्रसाद सिलाकारी, पंडित नंदीलाल सिलाकारी, विनोवा भावे और गोविंद दुबेकर थे. सागर सहित समूचे बुंदेलखंड के विद्यार्थियों को संस्कृत पढ़ाने के लिए ऐसे विद्वान लोगों ने इस पाठशाला की स्थापना की थी.