Sagar-गढ़ाकोटा का रहस मेला, महाराज छत्रसाल के पौत्र ने की थी शुरुआत, जानें वजह

 

बुंदेलखंड के प्रसिद्ध रहस मेला अपनी ऐतिहासिक, संस्कृतिक, धार्मिक और व्यापारिक महत्व के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध है. इसकी शुरुआत 18वीं शताब्दी में राजा मर्दन सिंह जूदेव ने की थी. सागर जिले के गढ़ाकोटा में सुनार नदी के किनारे भव्य मेले का आयोजन किया जाता है.

 

 

बसंत पंचमी पर ध्वजारोहण पूजन के साथ शुरू होकर होली तक यह मेला चलता है. होली से पहले होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान मेले को अपने पूरे शबाब पर देखा जाता है. लोक नृत्य के दौरान कई गांव के लोग हजारों की संख्या में यहां पर पहुंचते हैं.

 

 

 

एक समय वह भी आया था जब धीरे-धीरे यह मेल अपना अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा था ऐसे में 2003के बाद से इस मेले को क्षेत्रिय विधायक गोपाल भार्गव ने नए आयाम दिए. इसके बाद यह अपने पुराने रंग में वापस लौटा है.

 

 


ऐतिहासिक महत्व को लेकर इतिहासकार डॉ श्याम मनोहर पचौरी बताते हैं कि बुंदेलखंड पर महाराजा छत्रसाल का आधिपत्य था 1703 में छत्रसाल के बेटे हृदय शाह ने इस किले पर अपना अधिकार जमाया. हृदय शाह को इस स्थान से गहरा लगाव था,

 

 

मृत्यु के बाद उनके बेटे पृथ्वीराज ने पेशवा की सहायता से इसको हथिया लिया, सन 1785 में मर्दन सिंह गद्दी के उत्तराधिकारी हुए वह एक चतुर शासक थे गढ़ाकोटा और उसके आसपास उन्होंने सुंदर भवन बनवाए इसके अलावा उन्होंने अपनी प्रजा के लिए और भी कई कार्य ऐसे किए. जो काफी चर्चित हुए इन्हीं में से एक सन 1809 में एक मेले की शुरुआत की थी.

 

 

इसका उद्देश्य धार्मिक, सांस्कृतिक के साथ व्यवसायक महत्व देना था. आसपास के लोग यहां पर लघु और कुटीर उद्योगों को बना हुआ माल बेचते थे, मेला भरने के दौरान शुक्रवार को यह अपने पूर्ण रूप में आता था मेला धीरे-धीरे बड़ा स्वरूप प्राप्त करने लगा. यहां पर अच्छी नस्ल के पशुओं के लिए यह मेला पहचान बन गया. अच्छी नस्ल के जानवरों में घोड़ा ,गाय ,बैल, भैंस ,बकरी आदि के लिए इसकी पहचान बन गई.

 

 


मर्दन सिंह ने इस मेले को विकसित करते हुए यह घोषणा की थी यदि मुख्य बाजार शुक्रवार के दिन शाम तक कोई व्यापारी अपना पूरा माल नहीं भेज पता तो उसका सारा माल राजा द्वारा खरीद लिया जाएगा. बसंत पंचमी से होली तक चलने वाले इस मेले का किसानों के लिए सर्वाधिक महत्व था क्योंकि इस समय किसानों की फसल आती है.

 

 

 

वह धन-धान्य से पूर्ण होता था आने वाली फसल की तैयारी के लिए जानवरों की खरीदारी भी बड़ी मात्रा में करने लगा और धीरे-धीरे इस मेले ने पशु मेले का स्वरूप धारण कर लिया. एक समय था जब छोटे-छोटे सभी व्यापारी इस मेले से इतना लाभ प्राप्त कर लेते थे कि साल भर तक उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती थी.


रहस्य मेला का एक पक्ष सांस्कृतिक आयोजन का भी रहा है . विभिन्न क्षेत्रों से आए व्यापारी मित्र शाम और रात के समय में मनोरंजन के रूप में नृत्य गीत की प्रस्तुतियां किया करते थे. इन्हें देखने आसपास के लोग आते जिसमें सांस्कृतिक आदान-प्रदान स्वस्थ मनोरंजन भी मेला का एक अंग रहा है. राई नृत्य के माध्यम से व्यापारी लोग अपना विशेष मनोरंजन करते हैं.


By - sagartvnews
09-Mar-2024

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