Sagar-बुंदेली लोककलाकर चुन्नीलाल रैकबार का निधन, ढिमरयाई गायन से कमाया नाम
सागर जिले के लोक कलाकर चुन्नीलाल रैकवार का मंगलवार को 84 साल की उम्र में निधन हो गया। ढिमरयाई गायन में उनका कोई दूसरा मुकाबला नहीं था। बड़ी—बड़ी गायन और नृत्य प्रतियोगिताओं में वे मंच पर खड़े होते ही महफिल लूट लेते थे। उनकी जोशीली आवाज दर्शकों पर सम्मोहन का काम करती थी। एक बार राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में उनकी कलाकारी देख तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह भी दंग रह गए थे।
उन्हें अलग से नकद रुपए सहित पुरस्कार भी दिया था। इसके आलवा छत्तीसगढ़, राजस्थान समेत मध्यप्रदेश में बड़ी—बड़ी प्रतियागिताएं जीतकर उन्होंने ढिमरयाई का महत्व बढ़ाया। चुन्नीलाल जा जन्म कर्रापुर के साधारण परिवार में हुआ था। वह कुल तीसरी कक्षा तक ही पढ़ाई कर सके। लोकगीत और नृत्य में उन्हें काफी रुचि थी।
इसी रुचि को शौक बनाकर वे आगे बढ़े। 1982 में पंचायत स्तर की एक छोटी सी प्रतियोगिता जीतकर उन्होंने ढिमरयाई गाने की शुरूआत की। इसके बाद भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर, बिलासपुर, रायपुर, जयपुर, उज्जैन, उदयपुर जैसे बड़े शहरों में राज्य स्तरीय प्रतियोगिताएं जीतकर गायन के क्षेत्र में अपना नाम कमाते गए।
उनका बड़ो अच्छो बनो संभाग, सागर नोनो बनो नामक गीत काफी प्रसिद्ध रहा। इसमें उन्होंने बुंदेलखंडी में संभाग के पांच जिलों का बड़े ही रोचक ढंग से वर्णन किया है। अपनी बुंदेलखंड की लोक परंपरा लोक विरासत ढिमरयाई लोकगीत-लोकनृत्य को जो सम्मान दिलाया है वह बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि संपूर्ण देश के लिए गौरव की बात है।
बुंदेलखंड का बच्चे, बूढ़े, जवान, सभी चुन्नीलाल रैकबार का मुरीद है। उनके गायन, वादन, और नृत्य तीनों में अदृभुत सामंजस्य देखने को मिलता है। तब से लेकर आज तक चुन्नीलाल जी ने अपनी लोक गीत, लोक नृत्य ढिमरयाई परंपरा की जो साधना की है वह काबिले तारीफ है। उनका जाना सागर के लिए लोकगायन में अपूरर्णीय क्षति है। सागर ने एक लोक कलाकार के रूप में मोती खो दिया है। सागर टीवी न्यूज चुन्नीलाल की साधना को सलाम करता है।