सागर में हुई फोरेंसिक पाऊडर की खोज, जर्मनी से मिला पेटेंट, जानिए इसकी खासियत
सागर में फॉरेंसिक पाउडर की खोज कैसे बनाया, जर्मनी से पेंटेट
सागर में हुई फोरेंसिक पाऊडर की खोज, जर्मनी से मिला पेटेंट, जानिए इसकी खासियत
डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के अपराध शास्त्र और न्यायिक विज्ञान विभाग में डायटम रिसर्च यूनिट ने के बड़ी उपलब्धि हासिल की है टीम को इंडो-फ्रेंच प्रोजेक्ट पर काम करते हुए जर्मनी से अंतरराष्ट्रीय पेटेंट मिला है। यह पेटेंट फ्लोरोसेंस डाई युक्त डायटम नैनो-फिंगर प्रिंट पाउडर के संश्लेषण पर है। जो काफी सस्ता, कम हानिकारक, पर्यावरण के अनुकूल और अत्यधिक प्रभावी है।
प्रोजेक्ट की प्रमुख अन्वेषक डॉ. वंदना विनायक विभाग में एक दशक से शैवाल डायटम के क्षेत्र में अनुसंधान कर रही हैं। उन्होंने बताया कि बाजार में जाे फिंगर प्रिंट पाउडर उपलब्ध हैं वे 4 से 5 हजार रुपए कीमत के हैं। जबकि हमने जाे पाउडर तैयार किया है, उसकी कीमत 300 से 400 रुपए के बीच ही रहेगी। उन्हाेंने बताया फाॅरेंसिक मामलों की जांच में फिंगर प्रिंट महत्वपूर्ण भौतिक साक्ष्य होते हैं। लेकिन मौजूदा फिंगर प्रिंट पाउडर ऐसे रासायनिक यौगिकों से मिलकर बने होते हैं जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं।
डायटोमाइट पाउडर गैर-विषाक्त, अपेक्षाकृत किफायती है और विभिन्न सतहों पर फिंगर प्रिंट को बिना उनकी विशेषताओं को नुकसान पहुंचाए हुए विकसित करता है। इस पाउडर के विकास में शोधार्थी अंकेश अहिरवार, वंदना सिरोटिया, प्रियंका खंडेलवाल, गुरप्रीत सिंह और छात्रा उर्वशी सोनी ने महत्ववपूर्ण भूमिका निभाई है। साहित्य समीक्षा पर भी कई विद्यार्थियों ने काम किया है। एक पॉली लिंकर के साथ एक फ्लोरोसेंट डाई और डायटम फ्रस्ट्यूल्स (डायटोमाइट) को क्रिया करके विभाग की डायटम लैब में बनाया गया है।