सागर-पिता के नेत्रदान संकल्प को बेटे-बेटियों ने किया पूरा, बीएमसी में पूरी हुई प्रक्रिया
आंखे अनमोल हैं। बिना आंखों के यह दुनिया अंधेरे के पिंड से ज्यादा कुछ नहीं लगता। हम जीते जी आंखों से दुनिया को देखते हैं। विज्ञान के युग में अब मौत के बाद भी आंखें बेकार नहीं होती। नेत्रदान एक ऐसी प्रक्रिया है जो मरने के बाद भी आंखों को मरने नहीं देती। बल्कि इससे किसी के अंधेरे जीवन में रोशनी हो जाती है। इस बात को मोतीनगर वार्ड में विजय टाॅकीज के पास रहने वाले अगरबत्ती व्यापारी भरतलाल केसरवानी ने समझ लिया था। इसलिए वे जीते जी नेत्रदान का संकल्प ले चुके थे। 14 फरवरी को 74
साल की उम्र में उनका निधन हो गया। ऐसे में उनके परिवार ने उनके नेत्रदान संकल्प को पूरा किया। बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के आईसीयू में जैसे ही उन्होंने अंतिम सांसें लीं तो परिजनों ने आई बैंक इंचार्ज डाॅ सारिका चैहान को सूचना दी। डाॅ सारिका के अलावा कॉर्निया विशेषज्ञ नेत्र रोग विभाग बीएमसी और एचओडी डॉ प्रवीण खरे सहित नेत्र विशेषज्ञों की टीम ने नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी की। काॅर्निया निकालकर सुरक्षित रख लिया गया है। डाॅ सारिका चैहान ने बताया कि जल्द ही नेत्र प्रत्यारोपण की सुविधा शुरू हो जाएगी।
नेत्रदान बीएमसी आई बैंक का छठवां नेत्रदान है। दिवंगत भरतलाल केशरवानी की पत्नी आशा केसरवानी, बेटे पंकज केसरवानी, बेटी शिवानी, सुचिता, श्वेता, शुभा एवं का बीएमसी टीम ने आभार जताया। परिजन ने कहा कि नेत्रदान पुनीत कर्म है जो किसी नेत्रहीन के जीवन में अंधेरा हटाकर उजाले का नया सूरज लेकर आता है। हमने उनके संकल्प को पूरा किया है। उनकी आंखों से किसी को नई रोशनी मिलेगी यही हमारे पिताजी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।