देश के अलग-अलग इलाकों में होने वाले औषधीय गुण वाले आलू की अब सागर में भी पैदावार हो रही है। इनमें नीलकंठ आलू, काला आलू, लाल पहाड़ी आलू, गोल्डन आलू सबसे खास है। नीलकंठ यानी कि बैंगनी रंग के आलू को खाने से कैंसर से निजात मिलती है। इसमें एंटी कैंसर प्रॉपर्टी पाई जाती हैं। काले आलू से आयरन मिलेगा तो लाल पहाड़ी आलू खाने से शुगर कंट्रोल रहेगी।
देश-दुनिया को मल्टीलेयर फॉर्मिंग की तकनीक से परिचित कराने वाले आकाश चौरसिया ने अपने कपूरिया स्थित मॉडल फॉर्म हाउस में आलू की छह किस्मों को लगाया है। इसमें प्रमुख रूप से नीला आलू (नीलकंठ), ब्लैक आलू और लाल पहाड़ी आलू लगाया है। आकाश बताते हैं कि नीलकंठ आलू में एंटी ऑक्सीडेंट व कैरोटिन एंथोसाइनिन तत्व (एंटी कैंसर प्रॉपर्टी) पाया जाता है। इसके सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। सीधे शब्दों में नीलकंठ आलू खाने से व्यक्ति के शरीर में कैंसर व कई अन्य बीमारी से लड़ने की क्षमता विकसित होती है।
आकाश चौरसिया ने आगे बताया कि काले रंग का आलू, जिसका छिलका और अंदर गूदा भी काले रंग का होता है। उसमें ब्लैक आलू आयरन रिच होता है। इसको खाने से शरीर में आयरन की कमी पूरी होती है। यह अंदर-बाहर से ब्लैक होता है। खून की कमी वाले मरीजों के लिए यह काफी फायदेमंद होता है।
आकाश के अनुसार लाल छिलके वाला पहाड़ी आलू भी उन्होंने लगाया है। लैब रिसर्च में पाया गया है कि इस आलू में शुगर की मात्रा नाममात्र की होती है। इसके लगातार सेवन से शुगर के मरीजों को काफी फायदा होता है। यह अंदर—बाहर से लाल रंग का होता है। लाल आलू की कुछ किस्मों के अंदर गोल्डन रंग का गूदा भी होता है। आकाश के अनुसार उन्होंने अपने खेत में कुल छह प्रजातियों के आलू को लगाया है, जिनकी फसल तैयार हो गई है।
नीलकंठ आलू, काला और लाल आलू सामान्य आलू की तुलना में बाजार में 5 से 7 गुना अधिक रेट तक में बिकता है। आकाश चौरसिया ने कि एक एकड़ खेत में औसतन 6 से 8 क्विंटल तक बीज लगता है। जबकि 100 से 125 क्विंटल तक उपज होती है। इस लिहाज से सामान्य फसलों की अपेक्षा एक एकड़ में अन आलू से किसान एक सीजन में लाखों की उपज निकाल सकते हैं। मल्टीलेयर सेड में आलू के साथ मैथी, धनिया व अन्य पत्तियों वाली अन्य फसलों को भी वे लगाकर अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं।