सागर-गोपाल भार्गव ने की विशेष पूजा-अर्चना ? अभिमंत्रित रुद्राक्ष बांटे मंत्री पद पर कही बड़ी बात
गजानन की शरण में गोपाल आहूतियां देकर बोले पद नाशवान
सागर-गोपाल भार्गव ने की विशेष पूजा-अर्चना ? अभिमंत्रित रुद्राक्ष बांटे मंत्री पद पर कही बड़ी बात
तिल गणेश पर सागर के गढ़ाकोटा में सुनार नदी के गणेश घाट पर माघ मेले का आयोजन किया गया। इसमें प्राचीन सिद्दी विनायक श्रीगणेश देवालय में ब्रह्म मुहूर्त से भगवान् श्री गणेश का सहस्त्रार्चन एवं विधि विधान के साथ विशेष पूजन हवन किया गया। पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव भी मेले में अपने पुत्र अभिषेक भार्गव सहित सपरिवार मंदिर पहुंचे थे। यहां उन्होंने भगवा वस्त्रों की पारंपरिक वेशभूषा में भगवान श्रीगणेश की पूजा अर्चना की। हवन में अहूतियां भी दीं। इसके बाद मंदिर में आए श्रद्धालुओं को अपने हाथों से अभिमंत्रित यंत्र, चांदी के सिक्के, तिल एवं मोदक के लड्डू बांटे। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले 9 बार के विधायक इस बार मंत्री पद भी हासिल नहीं कर पाए। इसी के चलते एकाएक उनका राजनीति से मोह सा भंग होता दिख रहा है। मंत्री मंडल गठन के बाद अब वे राजनैतिक माहौल से दूर ईश्वर की साधना में लीन दिख रहे हैं। कभी व्यास गादी से कर्मकांडी पंडित बनकर प्रवचन दे रहे हैं। तो कभी समाज को एकजुट करने के बयान देते हैं। ऐसे में गणेश चतुर्थी पर उनकी पूजा-अर्चना को मंत्री पद के लिए विशेष अनुष्ठान से जोड़कर देखा गया। पत्रकारों ने भी उनसे पूछ लिया कि क्या मंत्री बनने के लिए यह अनुष्ठान किया जा रहा है? इस पर वे बोले मंत्री पद नाशवान है। पद तो आते-जाते रहते हैं। ईश्वर और आस्था शाश्वत है। यहां अनगिनत सालों से माघ माह की चतुर्थी पर मेला लगता है। पूजा अर्चना होती है। इसी के तहत पूजा में शामिल हुए और भगवान की स्मृति स्वरूप अभिमंत्रित सिक्के, कैलेंडर और रुद्राक्ष बांटे हैं। मंत्री-फंत्री पद की कोई बात नहीं है। इससे कोई मतलब नहीं है। नाशवान चीजें हैं, भगवान शाश्वत हैं। हालांकि यह पहला मौका है नहीं जब उन्होंने ईश्वरीय ज्ञान दिया हो। ब्राहृमण परिवार में जन्म लेने से उनका यह रूप स्वाभाविक ही है। इससे हटकर वे राजनीति के भी पंडित हैं। पिछले 20 साल मंत्री रहे। 40 साल से विधायक हैं। अपनी विधानसभा में उनकी पकड़ प्रदेशभर में नजीर के तौर पर देखी जाती है। इस बार वे मुख्यमंत्री की रेस में थे। लेकिन शायद किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और राजनीति में उनसे काफी जूनियर मोहन यादव बाजी मार गए। भार्गव कैबिनेट में जगह भी नहीं बना पाए। ऐसे में कदृदावर नेता की राजनीति के सूरज अस्त होने के कयास लगने लगे है। हालांकि राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं रहता है। ऐसे में करवट बदलते देर नहीं लगती। उनका यह बयान कि मंत्री-फंत्री आते-जाते रहते हैं शायद यही इशारा कर रहा है। आगे जो होगा वो भविष्य में सामने आएगा फिलहाल राजनीति के मंजे हुए पंडित का यह रूप सूबे में चर्चा का विषय बना हुआ है।