सागर-इस नदी में है रहस्मई पारस मणि ! लोहा से सोना बने आजमाते हैं किस्मत
पारस पत्थर से जुड़ी कई कहानियां हम बचपन से सुनते हुए आ रहे हैं. लेकिन ये कहा है कैसा है या किसके पास है, यह आज तक रहस्य ही बना हुआ है. सनातन धर्म में पारस पत्थर को लेकर बहुत सारी कहानियां प्रचलित है. पारस पत्थर को लेकर ये मान्यता है कि ये चमत्कारिक पत्थर लोहे से भी छू जाए तो उसे सोने में बदल देता है.
इंसान अर्से से चमत्कारिक पारस पत्थर को खोज रहा है, पर यह तलाश अब तक पूरी नहीं हो सकी. सागर में भी एक ऐसा ही पारस कुंड है, जिसको लेकर जनश्रुति है कि इसमें लोहे को सोना बनाने वाला पारस पत्थर रहस्यमय तरीके से मौजूद है, जिसे खोजने के लिए लोग आज भी गुपचुप तरीके से इसमें लोहा डालकर अपनी किस्मत आजमाते रहते हैं. लेकिन, वह पत्थर किसी के हाथ नहीं लगा,
दरअसल, सागर मुख्यालय से 42 किलोमीटर दूर प्रसिद्ध रानगिर माता मंदिर है, जो विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं में मौजूद है. यहां पर चट्टानों के कटाव के बीच देहार नदी निकलती है. इसी नदी के बीच में गहरा कुंड है, जिसे पारस कुंड के नाम से जाना जाता है. इस कुंड को लेकर अलग-अलग किंवदंती हैं.
इतिहासकार डॉ. श्याम मनोहर पचौरी ने अपनी किताब में भी इस जनश्रुति का जिक्र किया है, उन्होंने लिखा है कि लगभग 11वीं सदी में चंदौरी के राजा कीर्तिमान ने आक्रमण किया. उसके सैनिक अजपा नामक लोहार का पीछा कर रहे थे.
उस लोहार ने सेना के लोगों से अपनी रक्षार्थ ‘पारस मणि’ जल में फेंकी थी. तभी से स्थानीय लोग उसे पारस कुंड कहने लगे. कई बार हाथियों के पैरों में जंजीर बांधकर नदी के एक छोर से दूसरे छोर तक उन्हें घुमाया गया, लोहा डाला गया, लेकिन उस पारस पत्थर का सुराग नहीं लग पाया.
वही सैनिकों को वह पत्थर तो नहीं मिला, लेकिन बाद में देखा कि लोहे का जो एक कांटा था, उसका कुछ हिस्सा जरूर सोने का हो गया था. इससे यह यकीन हो गया कि वह पत्थर नदी में ही मौजूद है.
लोहार को छोड़ दिया गया और नदी से उस पत्थर की तलाश की गई. लेकिन, उसे खोजा नहीं जा सका. उस पत्थर को खोजने के लिए लोग आज भी पारस कुंड के पास लोहा लेकर पहुंच जाते हैं. लेकिन, अभी तक इस कुंड ने किसी की मुराद पूरी नहीं की.