सागर - ग्वालों की टोलियो ने जमकर किया दिवारी नृत्य ,सदियों से चली आ रही अनूठी परंपरा
मध्य प्रदेश के सागर जिले के खुरई में दीपावली का त्यौहार परंपरागत तरीके से उत्साह के साथ मनाया गया। इसी के साथ अगले दिन दिवारी खेलने वालों की टोली गावों से लेकर शहर तक निकली जिनका नृत्य आकर्षण का केन्द्र रहा। दिवारी नृत्य की परम्परा सालो पुरानी है।
जिसमे मिट्टी से बनी ग्वालीन की पूजा करते हैं। कहा जाता है कि मोन धारण करने वाले व्यक्ती दीपावली के दूसरे दिन सुबह गाय को पूजकर दिवारी खेलने के लिए निकल जाते है। वह दिनभर अन्न जल ग्रहण नहीं करते।
12 गांव के मेडे नाकर घूमते नाचते हैं। सुबह से लेकर रात तक दिवारी गाकर नृत्य करते हैं। एक साथ कई लोगों के द्वारा विभिन्न प्रकार की आकर्षित कपड़ों को पहनकर हाथों में मोर के पंखों को लेकर और तरह तरह सिंगार करके ढोलक की थाप पर थिरकते है।
ऐसी मान्यता है कि दीपावली के अवसर पर दिवारी नृत्य खेलना और देखना शुभ माना जाता है। पुरुष अपनी पारंपरिक लिवास पहनकर मोर के पंखों को लेकर एक घेरा बनाकर मोनिया नृत्य करते हैं।
कोकलवारा के रामकुमार यादव ने बताया कि दीपावली के बाद नगर व ग्रामीण क्षेत्रों में दिवारी गाने व नाचने की परम्परा है। युवाओं व बड़े लोगों द्वारा विशेष भेष भूसा पहनकर मोनिया बनते हैं वह दिनभर अन्न जल ग्रहण नहीं करते और न ही किसी से बात करते ।