सागर में अनोखा पुतरियो का मेला, जानिए क्या है 206 साल पुरानी परंपरा
सागर में पुतरियो का मेला अनोखा मेला देता है ये सन्देश
सागर में अनोखा पुतरियो का मेला, जानिए क्या है 206 साल पुरानी परंपरा
सागर जिले के रहली तहसील के एक छोटे से गाँव काछी पिपरिया में करीब 206 साल पुरानी परम्परा आज भी कायम है.भादों के माह में प्रतिबर्ष गाँव में मेला लगता है ,इस मेले की पुतरियो के मेले के रूप में ख्याति है.बुंदेलखंड में मिट्टी की मूर्तियों को पुतरिया कहा जाता है. प्राचीन काल में ग्रामीणों में शिक्षा की कमी एवं संसाधनों के आभाव में धर्मजागरण मूर्तिकला एवं चित्रकला के द्वारा झांकियो के माध्यम से किया जाता रहा.करीब 206 साल पहले दुर्गाप्रसाद पाण्डेय द्वारा काछी पिपरिया गाँव में पुतरियो के मेले की शुरुवात की गई थी.मूर्तिकला एवं चित्रकला में पारंगत थे. उन्होंने लगभग एक हजार मूर्तियो का निर्माण कर अपने निवास को एक संग्रहालय के रूप में विकसित कर धार्मिक कथाओ के अनुसार कृष्ण लीलाओ की सजीव झांकियां सजाकर धर्मजागरण का कार्य प्रारम्भ किया था.जो वाद में पुतरियो के मेले के रूप में जाना जाने लगा दुर्गाप्रसाद पाण्डेय के वाद उनके पुत्र बैजनाथ प्रसाद पाण्डेय ने इस मेले को आगे बढ़ाया तीसरी पीडी के जगदीश प्रसाद पाण्डेय ने अपने पूर्वजो की परम्परा को संजोकर रखते हुए आज तक बरकरार रहा है,चौथी पीढ़ी भी पूरी सिद्दत के साथ इस कार्य सहभगिता करती आ रही है.
लोग बताते है कि इस मेले को देखने के लिए गांव में अंग्रेजी शासक भी पहुंचे थे. जिसके बाद मेले में पांडे परिवार के बुजुर्गों ने उनकी भी झांकी भी बनाई थी जो आज भी लोगों को दिखाई जाती है .पाण्डेय परिवार के द्वारा लगातार चार पीढ़ियों से झांकियो के द्वारा धर्मजागरण के साथ व्यसनमुक्ति,गौ पालन का, मालिक के खेत पर ना जाने से खेती नाश का धन, कुप्रथा ,सन्देश देने का पुण्य कार्य अपने स्वयं के व्यय एवं परिश्रम के द्वारा दिया जा रहा है.
इस कार्य के लिए पाण्डेय परिवार के द्वारा न तो शासन से कोई सहायता की मांग की गई न ही संस्कृति विभाग द्वारा इस अनूठे आयोजन की सुध ली गई.आधुनिकता के दौर में इस मेले के प्रति लोग का आकर्षण लगातार कम हो रहा है. परंतु पाण्डेय परिवार इस परम्परा को सतत आने वाली पीढ़ियों तक जारी रखने का मनसूबा रखता है।