सागर-मानसून की विदाई को लेकर प्रकृति की सफेद चादर ने दिया बड़ा संकेत, रामायण काल से है इसका नाता
सागर-मानसून की विदाई को लेकर प्रकृति की सफेद चादर ने दिया बड़ा संकेत, रामायण काल से है इसका नाता
फूलों से मानसून विदाई के संकेत रामायण काल से है नाता !
सितंबर महीने की शुरुआत में ही बारिश को लेकर प्रकृति ने बड़ा संदेश दे दिया है. इसकी वजह से किसानों की चिंताएं और बढ़ गई है. दरअसल, इन दिनों खेत की मेड़ों पर जगह-जगह कांस के फूल खिल गए हैं. कांस के फूलों को मानसून की विदाई का संकेत माना जाता है.आदि कवि गोस्वामी तुलसीदास जी की ‘रामचरितमानस’ के किष्किंधा कांड में यह चौपाई विशेष रूप से प्रसिद्ध है और भगवान श्रीराम के विभावना को अद्वितीय ढंग से व्यक्त करती है. इस चौपाई के माध्यम से श्रीराम लक्ष्मण को कह रहे हैं कि अब बरसात गुजर चुकी है
और शरद ऋतु, जिसे सुंदरता का प्रतीक माना जाता है, आ गई है. सारी पृथ्वी कांस के फूलों से भर गई है, इससे मौसम का परिवर्तन स्पष्ट हो रहा है. बुजुर्गों से आपने सुना होगा कि कांस में फूलों की खिली बात का अर्थ होता है कि मौसम में बदलाव आ रहा है, और अब बारिश की प्रतीक्षा हैबुजुर्ग द्रोपदी गौतम बताती हैं कि सीता जी का हरण होने के बाद, जब भगवान श्रीराम ने बाली को मारकर सुग्रीव को राज दिलाया, तब सुग्रीव ने भगवान से वचन दिया कि वर्षा ऋतु के समापन के बाद वह सीता की खोज करेंगे. चार महीनों तक इंतजार करने के बाद, जब मौसम बदलता है, तब भगवान राम ने लक्ष्मण से इसका स्पष्ट उल्लेख किया. कांस के फूलों के बाद, खंडवर्ष आया और यह दिखाई दिया कि मौसम में बदलाव हो रहा है, लेकिन यह बारिश मौसम की तरह नहीं होती है, जैसे मानसून के साथ होती है.