कारगिल विजय गाथा : अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मनों के लिए काल बन गए थे सागर के हेमंत कटारिया
कारगिल में शहीद हुए सागर के हेमंत कटारिया की कहानी
कारगिल विजय गाथा : अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मनों के लिए काल बन गए थे सागर के हेमंत कटारिया
23 मई 1999 से 26 जुलाई 1999 तक की यह वह तारीख है जिसमें भारतीय सैनिकों ने अपने पराक्रम को दिखाते हुए दुश्मनों पर युद्ध में विजय हासिल की थी जिसे कारगिल युद्ध के नाम से जाना जाता है इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने अपने 573 सैनिकों को खो दिया था तो 13 सौ से अधिक घायल हुए थे इन्हीं में सागर के सदर निवासी कमांडो हेमंत कटारिया ने भी दुश्मनों से सीधा मुकाबला करते हुए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था
हेमंत कटारिया ने शहादत से पहले आखरी बार अपनी मां से फोन पर बात की थी और चिट्ठी भी लिखी थी जिसमें उन्होंने कहा था कि मां मरना तो 1 दिन सभी को है लेकिन तेरे बेटे के लिए देश सलाम करेगा मां तुझ पर लोग गर्व करेंगे कि तेरा लाल मातृभूमि की रक्षा में शहीद हुआ है शहीद हेमंत कटारिया का जन्म 26 अक्टूबर 1969 को शंकरलाल कटारिया और शांति देवी के घर हुआ था। हेमंत दो भाई और चार बहनों में सबसे बड़े थे।
बहन प्रभादेवी ने बताया कि हेमंत की प्राथमिक शिक्षा स्वीडिश मिशन स्कूल से हुई और डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक की पढ़ाई की। 30 मई 1994 को हेमंत सेना की 5 महार बटालियन में भर्ती हुए । 21 जुलाई 1999 में बारामूला कश्मीर में ऑपरेशन रक्षक के दौरान उनकी आतंकवादियों से मुठभेड़ हुई और इस दौरान वीरता पूर्वक लड़ते हुए देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहूति दे दी। शहीद हेमंत की याद में सदर क्षेत्र में प्रतिमा स्थापित की गई,