कभी डकैत थे लेकिन आत्मसमर्पण कर अब जी रहे आम ज़िंदगी ये सभी डकैत !
14 अप्रैल 1972 को मुरैना जिले के जौरा कस्बा स्थित गांधी सेवा आश्रम में 654 डकैतों ने गांधीजी की तस्वीर के सामने हथियार डालकर सरेंडर किया था। इस आत्मसर्मण को 50 साल पूरे हो गए हैं। इस उपलक्ष्य में जौरा के आश्रम में स्वर्ण जयंती समारोह मनाया गया। जिसमें 20 से ज्यादा आत्मसमर्पित डकैतों का सम्मान केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किया। इस दौरान सरेंडर डकैतों ने अपनी आपबीती भी सुनाई। गौरतलब है कि गांधीवादी विचारक डा. एसएन सुब्बाराव, लोकनायक जयप्रकाश और विनोवा भावे ने उस समय के कुख्यात डकैत माधौसिंह के साथ मिलकर डकैतों को हथियार डालने के लिए मनाया था, बहरहाल, इस आयोजन में राजस्थान के धौलपुर जिले की राजाखेड़ा तहसील के बसईघियाराम गांव निवासी पूर्व दस्यु सुंदरी कपूरी बाई राजपूत ने बताया कि गांव के दबंगों की प्रताड़ना से तंग आकर वह अपने पति खरग सिंह, देवर छोटेलाल के साथ बीहड़ों में कूद गई थी। पति खरग सिंह ने अपनी गैंग बनाई, जिसमें 22 सदस्य थे। चार साल में कई दर्जनों अपहरण और कई हत्याएं कीं। 12 अप्रैल 1972 को पति, देवर के साथ हथियार डाल दिए। चार साल जेल में रहे। वही, इस आयोजन में चंबल के कुख्यात डकैत रमेश सिकरवार भी अपने कई साथियों के साथ पहुंचे। उन्होंने कहा कि जब अन्याय होता है, कोई सुनता नहीं तब कोई बागी बनता है। अपने परिवार को कोई छोड़कर बागी नहीं बनता।
10 साल तक हरिविलास-माधौसिंह गैंग के सदस्य रहे पूर्व दस्यु बहादुर सिंह कुशवाह बताते हैं, कि चंबल के अन्य युवाओं की तरह वह भी 20 साल की उम्र में सेना भी भर्ती हुए। दो साल सेना में रहे। बीमारी से माता-पिता की मौत के बाद दबंगों ने 150 बीघा जमीन कब्जा कर ली। विरोध करने पर प्रताड़ित किया, गांव में रहना मुश्किल हो गया। इसके बाद बीच गांव में दबंग को गोली मारी और फिर 1962 में बीहडों में कूद गया। बहादुर सिंह कुशवाह