सागर- काली जी भैया जी वैद्य कंधे वाली की विशेष महिमा देखिये स्पेशल रिपोर्ट || SAGAR TV NEWS ||
एंकर : जयकारा माँ का जयकारा कंधे वाली काली का जयकारा देश दुनिया में जाने जानी वाली काली जी भैया जी वैद्य कंधे वाली का, नवरात्र में दुर्गा पंडलो में विराजमान माँ के अलग अलग नो रूपों के दर्शन कर भक्त धर्म लाभ उठाते है ऐसे की एमपी के सागर में 113 सालो से विराजती आ रही माँ काली दुर्गा के दर्शन आज आप को सागर टीव्ही न्यूज़ पर हम करवाते है साथ ही बताएँगे माँ की महिमा और स्थापना से जुडी कहानी - तो सुनाते है आपको काली जी भैया जी वैद्य कंधे वाली की महिमा
साल था 1909 भारत पर अंगेर्जों की हुकूमत हुआ करती थी। लेकिन इस सब के बीच सागर में नवरात्रि का जब पर्व आया तो एक ऐसी देवी की स्थापना हुई। जहां सालों से आज तक माँ के नौ रूपों में दर्शन होते हैं। इन्हे जाना जाता है। काली जी भैया जी वैद्य के नाम से, ये 113 वा साल है। सागर शहर के बड़ा बाजार क्षेत्र में रहने वाले मेहता परिवार की कई पीढ़ियों को माँ की सेवा का सौभाग्य प्राप्त है साथ ही इलाके और शहर के भक्तो की भक्ति माँ के आगमन से उनके विसर्जन तक डूबा रहता है। सागर की कंधे वाली काली में शुमार ये प्रतिमा शहर की तीसरी सबसे प्राचीन प्रतिमा हैं। जब मशालों के साथ माई का चल समारोह निकलता है। तो ये नज़ारा देखते ही बनता है। और हर तरफ ये शोर शोर सुनाई देता है चल माई काली माई चल माई काली माई....
एंकर : काली जी भैया जी वैद्य कंधे वाली की अनोखी महिमा है। कई सारे चमत्कार उनकी महिमा को वर्णित करते है। माँ का भक्तो के प्रति प्रेम और भक्तो की श्रद्धा के अनेको उद्धरण जन चर्चाओं में बने रहते है। आपको माँ की स्थापना से जुडी कुछ बाते बताते है।
एक सदी पुरानी बात है। यानी सौ साल से भी ज्यादा सन 1909 में दुर्गा प्रसाद जी मेहता जिन्हे वैद्य जी नाम से भी जाना जाता था वो जबलपुर में अचानक से गंभीर रूप से बीमार हो गए। और ये समय भी नवरात्रि का ही था। तब उनकी पत्नी लाइजी मेहता ने मन्नत मांगी की अगर उनके पति स्वस्थ हो जाते हैं तो वो सागर स्थित अपने घर पर माँ जगदम्बा की स्थापना करेंगी। और हुआ भी वैसा ही भैया जी वैद्य स्वस्थ हो गए और अपने घर आ गए। लिहाजा ऐसी प्रतिमा की स्थापना कराई गयी। जो शायद देश प्रदेश में कहीं और देखने न मिले। शिवाजी महाराज को अष्टभुजा माँ तलवार प्रदान करते हुए साथ में गणेश जी की मूर्ती अद्भुत दर्शन देते हैं।
यह परंपरा शुरुआत से एक ही रूप में चलती रही जिसे स्वर्गीय दुर्गा प्रसाद के बाद स्वर्गीय राजा रामजी वैध, फिर उनके पुत्र स्वर्गीय कृष्ण दत्त मेहता और इनके बाद कृष्ण दत्त मेहता के पांच पुत्र मोतीलाल मेहता, स्वर्गीय श्याम जी, गजानन मेहता, स्वर्गीय पंडित राजेश मेहता, गिरिराज मेहता ने माँ जगदंबे की स्थापना का कार्यभार संभाला। इस काम में बड़ा बाजार क्षेत्र के सभी प्रतिष्ठित परिवारों का पीढ़ी दर पीढ़ी सहयोग मिलता रहा है।
एंकर - एक समय ऐसा भी आया जब मेहता परिवार ग़मगीन हो गया क्योंकि माँ के सेवक आलोक मेहता का नवरात्रि से ठीक पहले स्वर्गवास हो गया। ये साल था 2020 सभी को लगा की अब पता नहीं क्या होगा क्या वो वैसे ही दर्शन कर पाएंगे जैसे अभी तक करते हैं। लेकिन इस सब के बाद डॉ.विवेक मेहता की बेटी श्रव्या मेहता ने सेवा कार्य संभाला और समर्पित होकर माँ की सेवा करने का बीड़ा उठाया।
2020 से पहले करीब 21 सालों से आलोक मेहता ही खुद सभी मूर्तियों का निर्माण घर पर करते थे। साथ ही मां दुर्गा की विशेष प्रेरणा से देवी जी की अष्टभुजा एक ही प्रतिमा पर नौं दिनों में माँ दुर्गा के नोँ स्वरूपों के दर्शन मात्र श्रृंगार परिवर्तन कर दर्शन करवाकर भक्तजनों को आत्म विभोर करने का बीड़ा उठाया। और अब ये काम उनके भाई डॉ. विवेक मेहता और भतीजी श्रव्या मेहता कर रही हैं। बात मूर्ती स्थापना की हो, श्रृंगार की हो, या फिर कोई भी छोटी बड़ी चीज किसी चीज में कोई कमी नहीं है। इस साल भी माँ के नौ रूपों में दर्शन हो रहे हैं। एक ख़ास बात और भी है। बीते 10 सालों से उन्हीं अष्टभुजा देवी जी की प्रतिमा पर विशेष दर्शन जो कि दशहरा के दिन सुबह 5 बजे से सुबह 9 बजे तक होते हैं। ये परंपरा आलोक मेहता ने शुरू की थी। मां जगदंबे की पांच आरती होती है। रात 8 बजे महाआरती में सागर शहर के अलग-अलग जगहों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। नगाड़े, ढोल, ड्रम, झालर, शंख झांझ और कई वाद्य यंत्रों की ध्वनि के साथ मां जगदंबे की महा आरती होती है। ये मंज़र देखने लायक होता है। रात 1 बजे शयन आरती के बाद मां के अगले स्वरूप का श्रंगार होता है। और सुबह ठीक 5 बजे मंगला आरती में सैकड़ों भक्तजन दर्शन का आनंद लेते हैं।
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