करीना-सैफ ने बेटे को दिया है यही नाम,अच्छा शासक या क्रूर पिता ? जानिए जहांगीर से जुड़ी खास बातें
अभिनेत्री करीना कपूर और सैफ अली खान के छोटे बेटे का नाम जहांगीर है, जिसका शॉर्ट नाम जेह मीडिया में पहले ही छा गया था. भारत में एक मुगल शासक जहांगीर भी रहे हैं, क्या आपको उनके बारे में ये खास बातें पता हैं. जहांगीर का असली नाम सलीम है और वे मुगल शासक अकबर के बड़े बेटे थे. सलीम से पहले अकबर की कोई भी संतान जीवित नहीं रहती थी. इस बात से दुखी अकबर ने कई मन्नतों के बाद सलीम को पाया. अकबर ने सलीम का नाम शेख सलीम चिश्ती के नाम पर रखा था. अकबर के बाद जब सलीम ने तख्त संभाला, तब उन्हें जहांगीर की उपाधि दी गई. जहांगीर का मतलब है दुनिया जीतने वाला. पार्वती शर्मा ने जहांगीर पर अपनी किताब एन इंटीमेट पोट्रेट ऑफ ए ग्रेट मुगल जहांगीर में एक वाकये का जिक्र किया है. अकबर ने पीर सलीम चिश्ती से अपने होने वाले बेटों और शेख सलीम चिश्ती की मौत के दिन के बारे में पूछा था. इसपर सलीम चिश्ती ने जवाब दिया जब शहजादे सलीम (जहांगीर) किसी चीज को पहली बार याद कर उसे दोहराएंगे, इसके बाद मेरी मौत हो जाएगी. और शेख सलीम चिश्ती की मौत ऐसे ही हुई. अकबर ने कई दिनों तक सलीम को तालीम से दूर रखा. एक दिन सलीम ने किसी की कही हुई दो पंक्तियां दोहरा दीं. उस दिन के बाद से शेख सलीम चिश्ती की तबीयत नासाज होने लगी और कुछ दिनों बाद उनकी मौत हो गई. जहांगीर की क्रूरता के भी किस्से हैं. एलिसन vanks ने अपनी किताब नूरजहां: एंपरेस ऑफ मुगल इंडिया में इसका पूरा वर्णन किया है. 17 अक्तूबर, 1605 को अकबर की मौत के बाद जहांगीर मुगल तख्त पर आसीन हुए. कहा जाता है कि जहांगीर कभी तो बहुत दरियादिल होते और कभी बेहद खूंखार. एलिसन लिखते हैं- जहांगीर ने अपने एक नौकर का अंगूठा सिर्फ इसलिए कटवा दिया था, क्योंकि उसने नदी के किनारे लगे चंपा के कुछ पेड़ काट दिए थे. उसने नूरजहां. की एक कनीज को गड्ढ़े में आधा गड़वा दिया था. उसका कसूर था कि उसे एक किन्नर का चुंबन लेते पकड़ लिया गया था. जहांगीर अपने बेटे खुसरो के साथ भी sakthi से पेश आए थे. खुसरों ने जब अपने पिता जहांगीर के खिलाफ बगावत की थी तब जंग में वे हार गए.जहांगीर का नाम उनकी कुछ अच्छी बातों के लिए भी याद किया जाता है. वे न्याय की जंजीर के लिए मशहूर हैं. उन्होंने आगरे के किले शाहबुर्ज और यमुना तट पर मौजूद पत्थर के खंबे में एक सोने की जंजीर बंधवाई थी जिसमें लगभग 60 घंटियां भी थी. इसे ही आगे चलकर न्याय की जंजीर के नाम से जाना गया. इस जंजीर के जरिए फरियादी मुश्किल समय में अपनी गुहार रखता था.