एमपी के बैतूल में एक गांव के ग्रामीण आजादी के 74 साल बाद भी बुनियादी जरूरतों से जूझ रहे है। बैतूल के शाहपुर जनपद में नदी किनारे बसा एक गांव बारिश में कालापानी बन जाता है। बाढ़ आते ही ग्रामीण गांव में कैद हो जाते है। यहां तक कि तीन तीन दिन गांव का संपर्क बाकी इलाकों से कट जाता है।
शाहपुर जनपद के पावरझंडा ग्राम पंचायत के गांव जामुन ढाना की यही कहानी है। 13 सौ की आबादी वाला यह गांव बारिश के दिनों में टापू बन जाता है। यहां पहुंचने के लिए गांव वालों को नदी पार करना पड़ता है। जिस पर पुल न होने से ग्रामीण बारिश के दिनों में गांव में ही फंसकर रह जाते है। राशन या मजदूरी के लिए गांव से बाहर जाने के बाद अगर नदी में बाढ़ आ जाये तो ग्रामीणों का गांव पहुचना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि नदी कई दफा दो दो दिन नही उतरती। हालांकि अभी स्कूल बंद है। लेकिन जब यह चालू थे। तब स्कूली बच्चों के लिए भी यह नदी मुसीबत बनती रही है। सांसद से लेकर विधायक और अफसरों के पास गुहार लगा चुके ग्रामीण अब थक चुके है। सरपंच ईश्वरदास की माने तो वे 2011 से अब तक सांसद,विधायक,जनपद सभी को पुल का प्रस्ताव भेज चुके है। लेकिन स्टीमेट के आधार पर जितनी रकम की जरूरत है। वह नही मिल पा रही है। एक घंटे के बारिश में ही आवागमन ठप्प हो जाता है। यहां तक कि चार चार दिन गांव में ही कैद हो जाना पड़ता है।
जनपद की सीईओ कंचन डोंगरे ने अब इस मामले में कार्रवाई का भरोसा जताया है।
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