Sagar - अब हर खेत तक पहुंचेगा पानी, विदेशी तकनीक से बदलेगी किस्मत! जानिए कैसे
बुंदेलखंड को हमेशा से ही पिछड़ेपन, सूखे और मैदानी इलाके के लिए जाना जाता रहा है. लेकिन अब यहां के हालात बदलने वाले हैं. आने वाले समय में बुंदेलखंड के किसानों का स्वर्णिम युग शुरू हो सकता है. मध्य प्रदेश सरकार ने इस दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है.
सरकार ने सागर में नदियों और नहरों से अंडरग्राउंड पाइपलाइन के माध्यम से पानी सीधे किसानों के खेतों तक पहुंचाने के लिए 5000 करोड़ रुपये की परियोजनाएं शुरू की हैं. इससे 2 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई का रकवा बढ़ जाएगा.
यह वाटर मैनेजमेंट सिस्टम इजरायल की एडवांस्ड रीसर्च इनिशिएटिव (ARI) तकनीक पर आधारित है. इसकी खासियत यह है कि यह तकनीक कम पानी में अधिक क्षेत्र को सिंचित करती है. इससे पानी की बर्बादी रुकती है और पानी सीधे उपयोग की जगह तक पहुंचता है.
साईसंकेत इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड इसे पहले भी करीब 10 लाख हेक्टेयर पर सिंचाई कर कर चुकी है।मध्य प्रदेश में 30 के करीब प्रोजेक्ट पर कार्य कर रही है। और अधिकतर प्रोजेक्ट को सफलता पूर्वक हैंडओवर भी कर दिए है।
सागर में भी पांच प्रमुख परियोजनाओं पर इस तकनीक के माध्यम से कार्य शुरू हो गया है. इन प्रोजेक्टों में आने वाली चुनौतियों और समाधान को लेकर एक तकनीकी कार्यशाला का आयोजन किया गया.
तकनीकी वर्कशॉप में हुई प्रेजेंटेशन के माध्यम से जानकारी इस वर्कशॉप में जल संसाधन विभाग के चीफ इंजीनियर R. D. अहिरवार, इंजीनियर युवराज बर्खे सहित अन्य अधिकारी, कर्मचारी, ठेकेदार और परियोजना से जुड़े लोग शामिल हुए. साइसंकेत ग्रुप के प्रबंध निदेशक मिलिंद मुरुदकर ने प्रेजेंटेशन के माध्यम से तकनीकी जानकारी दी.
इस पूरे वाटर मैनेजमेंट सिस्टम को मोबाइल और इंटरनेट से भी कंट्रोल किया जा सकता है. इसके लिए आउटलेट मैनेजमेंट सिस्टम (OMS) और स्मार्ट वॉटर डिस्ट्रीब्यूशन टेक्नोलॉजी को भी अपनाया जा रहा है.
यह एक आधुनिक सिंचाई पद्धति है जिसमें पानी को खुले नालों के बजाय दबावयुक्त पाइपों से खेतों तक पहुँचाया जाता है. यह तकनीक 90% जल दक्षता सुनिश्चित करती है और पूरी प्रक्रिया को ऑटोमेशन और रिमोट कंट्रोल से संचालित किया जा सकता है. इससे समय पर और आवश्यकता के अनुसार पानी की आपूर्ति संभव होती है जिससे फसल की उत्पादकता और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है.
जिले में इस तकनीक को जमीनी स्तर पर लागू किया जा रहा है. जिले की बंडा, हनोता, काढन, जैरा, कैथ और धसान-केन बेसिन में 12 से अधिक योजनाएं इस तकनीक पर आधारित हैं. इससे हजारों किसानों को लाभ मिल रहा है और पानी की हर बूंद का प्रभावी उपयोग हो रहा है.