सागर-बादल बाबा की दरगाह पर एक साथ होती है आरती और अजान, अद्भुत है स्थान

सागर में बादल बाबा की मजार
एक साथ होती आरती-अजान

सागर-बादल बाबा की दरगाह पर एक साथ होती है आरती और अजान, अद्भुत है स्थान


कौमी एकता की प्रतीक बादल बाबा की दरगाह के पास हिंदू पूजा करते दिखाई देते हैं. वहीं मुस्लिम भी देवी-देवताओं के चबूतरों के पास इबादत करते दिख जाते हैं. यह सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बुंदेलखंड के सागर में आसानी से देखी जा सकती है.
रहली में बादल बाबा के नाम से मशहूर बगीचे में हिंदू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल देखने को मिलती है. करीब 200 साल पुरानी रहली के वार्ड नंबर 5 में स्थित बादल बाबा की दरगाह हिंदू मुस्लिम एकता की प्रतीक है. दरगाह पर हिंदू और मुस्लिम अपने अपने रीति रिवाज से बाबा साहब की पूजा और इबादत करते हैं.यहां पर हर शाम हिंदू और मुस्लिमों की भीड़ रहती है. किसी खास मौके पर यहां पर अलग ही माहौल देखने को मिलता है. यहां पर आकर हिंदू और मुस्लिम का भेद खत्म हो जाता है. यहां पूजा करने आने वाला हर शख्स मजार पर माथा टेक जाता है. कहते हैं कि बादल बाबा के यहां मांगी जाने वाली हर मन्नत पूरी होती है. बाबा साहब का यह स्थान बादल बाबा के बगीचे के नाम से जाना जाता है, जहां पर दरगाह के आजू-बाजू हिंदू देवी देवताओं के भी छोटे-छोटे मंदिर और चबूतरे हैं. यहां श्रद्धालु सिंदूर, नारियल, अगरबत्ती और अन्य तरह की सामग्री से पूजा करते हैं. दरगाह पर लोबान छोड़ते गुलाब का फूल और सेंट अर्पित करते हैं.
मजार की स्थापना को लेकर मोहनलाल सेंधिया बताते हैं कि उनके पूर्वज स्वर्गीय रामदास जी 1825 में मकनपुर आगरा से आए थे और फिर मजार की स्थापना की गई थी. इसी तरह अन्य हिंदू देवी देवताओं को भी यहां पर लाकर स्थापित किया गया था. वहीं दरगाह के खादिम इस्लाम अली ने बताया वैसे तो यह जिंदा शाह मकनपुर वाले बाबा हैं. रहली के सेंधियां बंधु मकनपुर से एक ईंट लेकर आए थे और फिर यहां पर मजार बना दी थी.


By - sagar tv news
13-May-2023

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