राहतगढ़ सागर जिले के राहतगढ़ के किले में मां ज्वाला देवी का एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है। जिसकी जानकारी कुछ ही लोगों को है, यह मां ज्वाला देवी की मूर्ति किले के समय की बताई जाती है क्योंकि 1100 बी ईस्वी में तो आल्हा ऊदल की लड़ाई का भी बखान मिलता है। हालांकि यहां जो भी भक्त आता है मां उसकी मुरादें पूरी करती है।
जानकारी मुताबिक यह प्रतिमा यहां बरसों से विराजमान है, परमार वंश के महाराजा जय बर्मन को सन 1255 ईस्वी के एक शिलालेख प्राप्त हुआ था, जिसमें इस दुर्ग को उपराहद मंडल के नाम से संबोधित किया गया था, उसके बाद उसके बाद इस दुर्ग पर गोंड वंश मुस्लिम ब्रिटिश का शासन भी रहा, सन् 1925 में दुर्ग को संरक्षित घोषित कर दिया गया था आल्हा उदल की लड़ाई भी यहां हुई है जब राजा ज्वाला सिंह का राज्य हुआ करता था तो ज्वाला सिंह ने मां ज्वाला देवी की भक्ति कर उन्हें प्रसन्न कर लिया था, उसके बाद मां ज्वाला देवी की राजा ज्वाला सिंह पर ऐसी कृपा हुई कि जो राजा ने यहां चढ़ाई की उसकी हार निश्चित थी और पुरी सेना पत्थर की बन जाती थी राजा ज्वाला सिंह ने 11 वीं सदी में आल्हा की पत्नी मछला का हरण कर लिया था, उसके बाद ज्वाला देवी नाराज हो गई और यहां से जाकर जालंधर की पहाड़ी पर पथरीगढ की ओर पीठ देकर बैठ गई लेकिन बुजुर्ग बताते हैं माता का प्रमुख स्थान अभी भी किले पर है नवरात्रि में लोग माता रानी के यहां जाकर प्रसाद चढ़ाते हैं और अपनी मनोकामना की प्रार्थना करते हैं चाहे जालंधर का स्थान हो चाहे किले का स्थान है दोनों स्थान एक ही है जो पुण्य जालंधर में जाकर दर्शन करने से होता है वही पुन्य प्राप्त किले की ज्वाला देवी मंदिर पर जाने से प्राप्त होता है।
सागर टीवी न्यूज़ से सबसे पहले न्यूज़ लेने के लिए अभी अपना ईमेल डालें और सब्सक्राइब करें
Sagar TV News.