सागर जिले के खुरई में जब बेटियां अपने पिता की अर्थी के आगे मटकी लेकर चल रही थी तो देखने वालों की आंखें नम हो गई सारे बंधनों को तोड़कर बेटियों ने अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी। बुंदेलखंड में परंपरा के अनुसार बेटे ही अपने पिता को मुखाग्नि देते हैं लेकिन खुरई के पठार पर रहने वाले प्रसिद्ध सेठी परिवार के सदस्य जिनेंद्र सेठी के बेटा नहीं है उनकी दो बेटियां हैं प्रेक्षा और आरुषि।
जिन्होंने बेटों की तरह फर्ज निभाते हुए अपने पिता की न केवल अंतिम यात्रा में शामिल हुई बल्कि उन्हें मुखाग्नि विधि एक तरह से महिलाओं बेटियों का श्मशान घाट जाने पर बंदिश है लेकिन अब बेड़ियां टूट रही है और लोग आगे बढ़ रहे हैं बता दें कि जिनेंद्र सेठी का बीमारी के चलते असमय निधन हो गया जिनकी अंतिम यात्रा निकाली गई इस अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में शहर के लोग शामिल हुए लेकिन बेटियों के द्वारा अंतिम यात्रा में शामिल होना और फिर अपने पिता की अंत्येष्टि को मुखाग्नि देना चर्चा का विषय रहा। सामाजिक रूढ़ियों को तोड़कर दो बेटियों ने बेटे होने का फर्ज निभाया है। दोनों बेटियों ने अपने पिता को मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार करके रूढ़िवादी परंपराओं को आइना दिखाया तथा भाई विहीन अन्य बेटियों के समक्ष एक मिसाल भी प्रस्तुत की है।
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