भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को आनंद से मनाया, वसुदेव बने मंत्री भूपेन्द्र सिंह

खुरई। भजन और भरोसा कभी कम मत होने देना। ठाकुर जी के हाथ में ही सब है यह भरोसा डिगने मत दो। सदैव सकारात्मक विचार रखें और सोचें कि अच्छा ही होगा। अच्छा न भी हो तो सोचें कि अभी समय नहीं आया होगा। भिखारी दस घरों में राम नाम लेकर भिक्षा मांगता है भिक्षा नहीं मिलती लेकिन दस बार के राम नाम के प्रताप से उसे ग्यारहवें घर में भोजन मिल जाता है। यही है भरोसे और पुण्य का विधान। संतश्री कमल किशोर नागर जी ने अपने दिव्य प्रवचन और भजनों की सरिता से यह सूत्र वचन कथा श्रावकों को भेंट किया। चतुर्थ सोपान की कथा समापन पर भगवान श्री कृष्ण जी का जन्मोत्सव भव्यता से मनाया गया। मुख्य यजमान दंपत्ति नगरीय विकास एवं आवास मंत्री श्री भूपेंद्र सिंह वासुदेव के रूप में शिशु रूप भगवान को टोकरी में रख कर उत्सवी वातावरण में व्यास गादी की ओर लाए जहां श्रीमती सरोज सिंह जी ने देवकी मैया रूप में शिशु को दुलार किया। व्यास गादी से श्री नागर जी ने बधाई हो, बधाई हो कह कर शिशु कृष्ण को हाथों पर उठा लिया।
संत श्री नागर जी ने कहा कि यह देह भजन के लिए है, भोगों के लिए नहीं है। इस देह से पाप मत करना। भजन में यही शक्ति है कि पुण्य बनता जाता है। नागर जी ने एक आख्यान बताया कि कालचक्र भगवान शंकर के पास हैं। भगवान विष्णु ने भगवान शिव की एक हजार सहस्र कमल दल से उनकी पूजा करने का संकल्प लिया। शिव जी ने लीला रची कि एक कमल का पुष्प कम पड़ गया। विष्णु जी ने यह देख अपने संकल्प को पूर्ण करने तुरंत अपना एक नेत्र कमल निकाल कर पूजा में अर्पित कर सहस्र संख्या पूरी कर दी। शिव जी ने प्रसन्न होकर अपना काल चक्र विष्णु भगवान को देकर कहा यह चक्र सदैव अपने हाथों में रखना।
संतश्री ने दो समसामयिक उदाहरण देकर पुण्यों और पापों के परिणाम बताएं। उन्होंने बताया कि महाभारत युद्ध के पश्चात गांधारी को जब यह पता लगा कि उसके भाई शकुनि ने अपनी कुनीति से गलत मार्ग दिखाते हुए उसके पुत्रों और राजवंश का नाश कराया है तब गांधारी ने अपने भाई शकुनि को श्राप दिया कि मेरी तरह तेरा भी वंश नष्ट हो जाएगा और तेरे राज्य की सत्ता कभी स्थिर नहीं रह पाएगी और रक्तपात होता रहेगा। यह देखिए कि शकुनि के राज्य में जो कि आज का अफगानिस्तान में है, कभी भी रक्तपात नहीं रुक सका और वहां सत्ता किसी की स्थिर नहीं रह पाती।
दूसरे उद्धरण में श्री नागर जी ने बताया कि लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का भारत का प्रधानमंत्री बनना तय हो चुका था। राजनैतिक परिस्थितियां जैसी भी बनी हों लेकिन प्रारब्ध ने उनके हिस्से बड़े पद के बजाए ऊंचा काम करना लिखा था। देखिए कि भारत का एकीकरण करके वे गये। इसी भारत भूमि के जन जन ने अपने घरों से लोहा एकत्रित किया और सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा ऐसी बनाई कि विश्व में उनकी कीर्ति को सबसे ऊंचा कर दिया। समय समय पर होत है समय समय की बात, किसी समय का दिन बड़ा किसी समय की बात।
श्री नागर जी ने कहा कि गुरु से बड़ा परम तत्व कोई नहीं। गुरू तत्व ही दाग धो देता है, वहीं शिवतत्व है। कोई कहे कि हम कथा सुनाते हैं तो मानना कि कथा मनुष्य से नहीं होती,कथा गुरु ही सुनाता है। शिव तत्व से कथा होती है। मनुष्य से मनुष्य का दुख कभी नहीं कटता। किसी मनुष्य को हम भगवान बना देते हैं तो वह न भक्त रह जाता है और न ही भगवान रह जाता है। तंत्र झाड़ फूंक करने वाले गुरुओं से दुख दूर नहीं होते बल्कि वे हमारी अज्ञानता का मजा लेते हैं। दुख तो भजन से ही दूर होते हैं। कैसा भी अच्छा बुरा प्रारब्ध हो यूं किसी से कैसे भी दबा कर नष्ट मत करवाओ बल्कि समय की प्रतीक्षा करो। रोग को जड़ से मिटाना है ढांकना नहीं है। समय से पहले सुधरेगा भी नहीं। हमारा पूर्वजन्म के कर्मों का हासिल कटने दो। अभी कथा सुनने का समय है, जिस दिन समय आएगा सुधर जाएगा। अतः अपने आर्तनाद और अपनी पुकार को जारी रखना इसी पर परमात्मा कृपा करता है।
संत श्री नागर जी ने युवा पीढ़ी को संदेश देकर कहा कि आस्थावान बनो। भारतभूमि से आस्था कभी कम नहीं हो इसलिए यहां की मिट्टी से और यहां के धर्मस्थानों से जुड़े रहो। गुरुजन, वृद्धजन, अनुभवी जन, देव पुरुषों के सत्संग में रहो। ऐसी सभा और ऐसा घर शोभा नहीं देता जहां वृद्ध न हों। वृद्धजनों की डांट से भी घर परिवार में आभा और आशीर्वाद बना रहता है, अतः इनको अपने पास रखो। उनका स्वभाव कैसा भी क्यों न हो, हमारा कर्तव्य है कि वे बोलें हम सुनते रहें, वे डांटे और हम सहते रहें।
श्री नागर जी ने कहा कि परिवारों में धर्म, भजन, माला के संस्कार हैं और परिवार का कोई संदेह उठाता है कि इतने वर्षों से किया फिर भी क्या हासिल हुआ तो यह नास्तिकता की शुरुआत है। इसे बढ़ने मत दो। अभी का बिगड़ा कल और बिगड़ता चला जाएगा। और गिरते गिरते नाली के कीड़े तक पहुंच जाएगा। हम यह न सोचें कि यह सब किया अकारथ जाएगा। पांडु देश के ज्ञानी राजा ने अपने पूर्वजन्म की अल्प त्रुटि से हाथी के रूप में जन्म लिया। नदी में जलक्रीड़ा के दौरान विशाल काय मगर ने उसका पैर खींच कर गहरे पानी में डुबा दिया। मझधार में सारे प्रयास निष्फल हो गये तब उसने गोविंद जी को पुकारा कि प्रभु अब आप ही एक सहारा हो और गोपाल जी तत्क्षण उसके पूर्वजन्म के सत्कर्मों को उसके जीवन में जोड़ कर मगर का सिर काट कर भी उसे बचा लिया। तो हमें इसी भाव से रहने चाहिए कि हे प्रभु जीवन आपके हाथ में है जैसा कहोगे बिना शिकायत गुजार देंगे बस मेरा मरण सुधार देना।
कथा समापन पर मुख्य यजमान मंत्री श्री भूपेंद्र सिंह और श्रीमती सरोज सिंह के पूरे परिवार और उपस्थित कथा पंडाल ने कृष्ण जन्म का आनंदोत्सव नृत्य उल्लास से मनाया। श्रद्धालु जन पिता वासुदेव पर फूलों की वर्षा कर रहे थे। संत श्री नागर जी की प्रसन्नता और संतोष बधाई हो, बधाई हो के रूप में गूंज रहा था। आज कथा पंडाल में बीना विधायक महेश राय, महापौर प्रतिनिधि डा सुशील तिवारी, पूर्वमंत्री नारायण कबीर पंथी, बुंदेल सिंह बुंदेला, रंजोर सिंह बुंदेला शाहगढ़, विधायक कुरवाई श्री हरिसिंह सप्रे, पूर्व विधायक कुरवाई वीर सिंह पंवार, मंत्री प्रतिनिधि लखन सिंह, अभिराज सिंह, पृथ्वी सिंह, रामनिवास माहेश्वरी, काशीराम टेलर मास्टर, बलराम यादव, देशराज यादव, नीतिराज पटेल, प्रफुल्ल बोहरे, सौरभ नेमा, लक्ष्मण सिंह लोधी, सभी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, समस्त पार्षद, भाजपा पदाधिकारी व कार्यकर्ता, आयोजन समिति के सदस्यों, कार्यकर्ताओं, हरे राम माधव समिति सहित कई स्वयंसेवी संगठन और हजारों की संख्या में कथाप्रेमी उपस्थित थे।


By - sagartvnews
13-Dec-2022

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