सागर-बाघराज के रक्षक अजगर दादा,देवता मानकर लोग करते हैं पूजा || SAGAR TV NEWS ||
सागर में बाघराज मंदिर की गुफाओं में लोग एक विशालकाय अजगर को सदियों से देखते आ रहे हैं। पूरा स्वरुप किसी ने नहीं देखा, बावजूद इसके इनकी लंबाई 40 फीट से अधिक और मोटाई बड़े गोल पिलर से भी मोटी बताई जाती है। लोग इन अजगर दादा को देवता व सिद्ध संन्यासी मानकर पूजा करते हैं। बता दें कि दो दिन पहले यहां एक गुफा में अजगर दिखा था, लेकिन मुंह और शरीर का कुछ हिस्सा ही कैमरे में कैद हो सका। ताज्जुब तो इस बात का है कि बाघराज मंदिर परिसर में देखे जाने वाले इन अजगर दादा से लोगों को भय भी नहीं लगता। उनकी मौजूदगी में लोग उनकी पूजा करते हैं, अगरबत्ती लगाते हैं, लेकिन सांप से आज तक किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाया है।
बाघराज मंदिर के पुजारी पुष्पेंद्र महाराज बताते हैं कि अजगर दादा का शरीर काफी विशाल है। वे शांत स्वभाव के हैं। कई पीढ़ियों से लोग उनके दर्शन करते आ रहे हैं। वे यहां के रक्षक हैं। हजारों लोग उनके दर्शन कर चुके हैं। आंवला नवमीं के दिन भी हरसिद्धि मंदिर के सामने पहाड़ी के नीचे गुफा में उन्होंने दर्शन दिए थे। वैसे नवरात्र के दौरान एकाध दिन वे जरुर दर्शन देते हैं। पुष्पेंद्र महाराज का दावा है कि उन्होंने स्वयं व कमेटी के पुराने लोगों ने उनके प्रत्यक्ष पूरे दर्शन किए हैं। मंदिर कमेटी से जुड़े रहे रामदास सोनी मम्मा बताते हैं कि उन्होंने करीब 30 साल पहले अजगर दादा के विशालकाय स्वरुप के साक्षत दर्शन किए थे। उनकी मूछें भी थी। पीछे वाली हनुमान मंदिर वाली पहाड़ी के नीचे एक विशाल गुफा बनी है, वहीं अंदर उनका स्थान हैं। अधिकांश दफा वहीं उनके दर्शन हुए हैं। शरीर बड़ा होने से वे सरपट नहीं चलते बल्कि धीरे-धीरे खिसकते हैं।
बाघराज मंदिर के पुजारी पुष्पेंद्र महाराज यहां करीब 30 साल से सेवा में हैं। उनके अनुसार यह पुराना सिद्ध क्षेत्र है। मंदिर परिसर में बीते साल निर्माण के दौरान बड़े-बड़े अजगर आकर पत्थरों पर बैठ जाते थे। कई दफा शाम को या रात के समय 10 से 12 फीट लंबे ब्लैक कोबरा, कभी-कभी जोड़े से भी यहां फर्श पर दर्शन देने आ जाते हैं। दुर्गा मंदिर के सामान की बंद पेटियों तक में सांप निकले हैं। पास ही स्थित मानस भवन के अंदर तक पहुंच जाते हैं। पुष्पेंद्र महाराज का दावा है कि आज तक सांपों ने किसी इंसान या अन्य प्राणी को कभी नुकसान नहीं पहुंचाया। एक बार तो बड़े-बड़े अजगर वे खुद बोरे में बंद कर पहाड़ी के पीछे छोड़कर आए हैं।