सागर-छात्रों ने नाटक मृगतृष्णा का मंचन कर तालियां बटोरी
सागर के डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय में नाटक मृगतृष्णा का मंचन किया गया। इस नाटक में उत्तर भारत के पूर्व के मगध के शासक श्रेणियां बिंबिसार के शासनकाल में दो धाराओं में बह रही समाज की स्थिति को बयां किया है। एक ओर बिंबिसार की युद्ध संयोजन एवं विवाह नीति से मगध राज्य को एक विस्तृत राज्य में परिवर्तित कर दिया था , राजगृह मगध की राजधानी होने के साथ ही व्यापारियों और समृद्ध लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र था वहीं दूसरी ओर इन सब के बावजूद भी किसानों की स्थितियों में कोई परिवर्तन नहीं आया , स्त्रियों की दशा सिर्फ भोग वस्तु के रूप में थी ,पुरषों के स्वार्थ में उनकी स्थिति और दरिद्र होती दिखाई पड़ती है। जाति प्रथा से पीड़ित निम्न वर्ग को उनके योग्य होने के बावजूद भी अपने मूल कर्तव्य से वंचित रहना पड़ता। इसका सटीक उदाहरण नाटक के पात्र करालक द्वारा बोला गया संवाद - " वर्षों पहले गृह त्याग कर तक्षशिला चला गया था... बालक ही था तब अपना नाम बदल कर अनेकों वर्ष उनके साथ रहा उनका शिष्य बन... कर वेद, वेदांग, व्याकरण, निरुक्त ,कल्प.... पूरे 10 वर्ष अध्ययन किया किंतु शास्त्रों का ज्ञान मेरी जाती नहीं बदल सका सत्य का पता चलने पर मुझे निष्कासित कर दिया.... " जैसे संवादों द्वारा जातिवाद के वर्चस्व की व्याख्या करता है। वहीं दूसरी ओर नाटक में नाटककार ने धर्म की रूढ़िवादिता व धर्म पलायन की स्थिति को भी व्यक्त किया है इस नाटक का मंचन ललित कला और प्रदर्शनकारी कला विभाग मैं वार्षिक प्रायोगिक परीक्षा के अंतर्गत स्नातक व स्नातकोत्तर द्वितीय सेमेस्टर के छात्रों ने किया।