सागर में विराजे हैं भगवान चोरेश्वर महादेव, रात में क्यों चोरी कर गई थी भगवान की स्थापना,जानिए
सागर के इतवारा बाजार में स्थित प्रसिद्ध सरस्वती मंदिर में चोरेश्वर महादेव विराजमान हैं। भगवान भोलेनाथ का नाम चोरेश्वर कैसे पड़ा इसके पीछे की कहानी बेहद रोचक है। मंदिर के मुख्य पुजारी यशोवर्धन चौबे बताते हैं कि सरस्वती मंदिर से करीब 200 मीटर की दूरी पर स्थित रिंगे बाड़ा में वामनराव रिंगे, सुधाकर आठले, यशवंत राव आठले के परिवार रहते थे। बाडे में भगवान भोलेनाथ का निजी मंदिर था। वर्ष 1961-62 भोलेनाथ को निजी बांडे से बाहर लाकर स्थापना करने का विचार रखा गया। जिसके बाद भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा की चोरी करने की योजना बनाई गई। इसमें खास बात यह थी कि प्रतिमा चोरी करने से पहले वामनराव रिंगे व अन्य परिवार की सहमति ली गई। जिसके बाद रातों रात भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा की चोरी की गई और जिस स्थान पर सरस्वती मंदिर बना है वहां पर वट वृक्ष लगाकर भोलेनाथ की स्थापना की गई। तभी से भोलेनाथ का नाम चोरेश्वर महादेव पड़ा। क्योंकि भगवान की चोरी कर स्थापना की गई थी। यहां गज छाया में चोरेश्वर महादेव विराजमान हैं। साथ ही चोलेश्वर महादेव भी स्थापित किए गए हैं, जो सर्प छाया में विराजे हैं।
पंडित yshovardhn चौबे ने बताया कि मंदिर में महाशिवरात्रि पर्व पर भगवान चोरेश्वर महादेव और चोलेश्वर महादेव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन असाध्य रोगों से ग्रसित लोग पंचामृत से भगवान का अभिषेक करते हैं तो उन्हें रोगों से मुक्ति मिलती है। वहीं जिन लोगों के विवाह संस्कार में कोई रुकावट या परेशानी आ रही है तो वे धतूरा के फल में दोनों तरफ मखाना लगाकर भगवान भोलेनाथ को माला चढ़ाएं तो उनकी मनोकामना पूरी होती है।