गढ़ाकोटा - दुनिया में कोई राक्षस नहीं लेकिन अहंकार और अधर्म व्यक्ति को राक्षस बना देता है
विश्व के इतिहास में दो संस्कृतियां समानांतर धारा में बही है। एक वैदिक संस्कृति एक श्रमण संस्कृति। दोनों संस्कृतियों को जोड़ने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम एक आदर्श पुरुष हुए है जो अहिंसक समाज को संगठित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ये बात सागर के गढ़ाकोटा के बड़ा जैन मंदिर प्रांगण आचार्य विद्यासागर के प्रिय शिष्य ऐलक श्री सिद्धांत साग़र महाराज ने धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कही, उन्होंने कहा की भारतीय संस्कृति की सबसे पहले जरूरत करुणा और प्रेम है। करुणा का पालन गौ रक्षा से शुरू होता है। और प्रेम का आधार वात्सल्य भाव होता है। ऐलक सिद्धांत साग़र महाराज ने राम की महिमा सुनाते हुए कहा कि मानवता का प्रारंभ क्षमा से होता है। अहंकार और दूसरों की निंदा करना दानवता का प्रतीक आसुरी गुण है। इस आसुरी वृत्ति के चलते व्यक्ति धर्म को भूल जाता है। दुनिया मे कोई राक्षस नहीं है। लेकिन अहंकार और अधर्म व्यक्ति को राक्षस बना देता है।