सागर जिले के रहली नगर में सुनार नदी के सुरम्य तट पर करीब 11 सौ साल पुराना ऐतिहासिक सूर्य मंदिर है।मकर संक्रांति पर भगवान सूर्य की आराधना का विशेष महत्व माना जाता है।सूर्य मंदिर की निर्माण 10 वीं शताब्दी में चंदेल वंश के राजाओं द्वारा कराया गया था।मंदिर अब मूल स्वरूप में नही है,लेकिन मंदिर में सूर्य भगवान की मूर्ति चंदेल कालीन कला का अद्भुत नमूना माना जाता है।इस मंदिर का महत्व को लेकर बताया जाता है कि पूरे देश में यह एक इकलौता मंदिर है,जो कर्क रेखा पर स्थित है।मंदिर का मुख द्वार पूर्व मुखी होने के कारण इसका विशेष महत्व है। इतिहासकार बताते हैं कि रहली का सूर्य मंदिर पूर्व मुखी है। सूर्योदय के समय सूर्य की किरणें सीधे मंदिर पर पड़ती हैं.यह मंदिर स्थापत्य कला की शहतीर कला में बना हुआ है. मंदिर में स्थित भगवान सूर्य की प्रतिमा सात घोड़ों के रथ पर सवार है.सूर्य भगवान 7 वर्णों के प्रतीक के साथ अश्व रथ पर सवार हैं. मंदिर में सूर्य देव की प्रतिमा के साथ भगवान सूर्य की दो पत्नियों की भी प्रतिमाएं स्थापित है.साथ ही दाएं और बाएं भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित है. इस मंदिर में महाश्वेता देवी अभय मुद्रा में हैं और त्रिदेव ब्रह्मा,विष्णु महेश की त्रिमूर्ति भी विराजमान,मंदिर के पृष्ठ भाग पर नाग युगम की आकर्षक पाषाण प्रतिमा जड़ित है।विगत वर्षों सूर्यमंदिर को पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन किया था उसके वाद पहली बार सूर्यमंदिर के रखरखाव का काम पुरात्तव विभाग द्वारा कराया गया है बाउंड्री बाल बनने से मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त हो गई है साथ ही रंगरोगन होने से मंदिर की भव्यता बढ़ गई है।मकर संक्रांति पर भगवान सूर्य की आराधना का विशेष महत्व माना जाता है
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