चूड़िया गिरवी रख माँ ने जिसे पढ़ाया,पहली ही बार में मिली सफलता,द्रोपती के संघर्ष की कहानी |STVN INDIA|
वो लड़की जिसे पढ़ाई जारी रखने के लिये मजदूरी करनी पड़ी, वो लड़की जिसके एडमिशन के लिए फ़ीस कम पड़ी तो पड़ोसियों से मदद लेनी पड़ी, वो लड़की जिसे यूनिवर्सिटी के दाखिले के लिए माँ ने अपनी चांदी की चूड़ियां गिरवी रखी, वो लड़की जिसने अपने पहले ही इंट्रेंस में आरक्षक की परीक्षा क्रेक की, संघर्ष से सफलता तक की ये कहानी सागर जिले के एक छोटे से गांव सीहोरा में पली बढ़ी आरक्षक द्रोपती अहिरवार की है जो उस गांव में तब से लेकर अब तक एकमात्र पुलिस में चयनित बेटी है। सागर जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर स्थित सिहोरा गांव में पली बड़ी द्रोपती 5 भाई बहिन थे वह बचपन से ही पुलिस में भर्ती होने का सपना देख रही थी, लेकिन परिवार की हालत ठीक नहीं होने की वजह से उसके ये सपने टूटते से दिख रहे थे दरअसल हुआ कुछ यूँ था कि पिताजी कपूरे अहिरवार की तबियत खराब रहने की वजह से परिवार की माली हालत ठीक नहीं रहती, माँ बीड़ी बनाकर गुजारा बसारा करती थी, इसी की वजह से द्रोपदी के भाई बहिनो की पढ़ाई भी छूट गई थी, लेकिन द्रोपदी के छोटे और परिवार में लाड़ली बेटी होने के कारण उसकी पढ़ाई जारी रही, कक्षा 8 में जब उन्हें सप्लिमेंट्री आई तो द्रोपदी ने पढ़ाई छोड़ दी, और वह घरेलू कामो में हाथ बटाने लगी फिर क्या गांव के लोग उसके पिताजी से शादी करवाने लगे, शादी की बात द्रोपदी को इतनी चुभी कि उसने फिर से पढ़ाई करने का मन बनाया, पैसे नहीं होने की वजह से उसने 20 दिन तक खेतो में काम किया इसके बाद भी पैसे कम पड़े तो पड़ोसियों से मांगे फिर दूसरी बार कक्षा 8 की परीक्षा दी जिसे अच्छे अंको से पास किया, 2006 में 10 की बोर्ड की परीक्षा में फर्स्ट डिवीजन पास हुई , 12 वि में 71 फीसदी अंक नंबर लाकर गांव में माँ बाप का नाम रोशन किया, बारहवीं की पढ़ाई के बाद गांव वालो के साथ अब घर के लोग भी उसकी पढ़ाई बंद करवाना चाहते थे लेकिन द्रोपदी की माँ उसके साथ थी पैसे नहीं होने पर अपनी हाथों चूड़ियाँ गिरवी रख दी। इसके बाद द्रोपदी ने यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया कुछ समय बाद 2009 में पुलिस का फॉर्म भरा पहली ही बार में उसे सफलता मिल गई। मात्र 18 साल की उम्र में द्रोपदी आरक्षक बन गई, जो लंबे समय से सागर कंट्रोल रूम पदस्थ है अब द्रोपदी अपने माँ बाप की देखभाल कर बेटी होने का कर्तव्य और पुलिस में आरक्षक के रूप में समाज को अपनी सेवाय देकर बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभा रही है। और खुद डीएसपी बनने की तैयारियों में जुटी है। इतना ही नहीं बचपन में द्रोपदी की शिक्षा और उसके परिवार की बीच आये आर्थिक संकट को वह दूसरी की कमजोरी नहीं बनने देना चाहती है, द्रोपदी अपनी स्व बहिन की बेटी को और उसके साथ मुहल्ले की करीब आधा दर्जन बेटियों के पढ़ने में उनकी मदद कर रही है। इसके साथ ही वह प्रयास कोचिंग में जाकर भी बच्चों को पढ़ाती है। द्रोपदी के संघर्ष की कहानी समाज के लिए मिशाल है समाज के लोग और महिलांए उनसे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ सकते है ऐसी वे खुद कहती है की अगर कोई मन में कुछ ठान ले तो फिर वह नामुमकिन नहीं है। सागर टीव्ही न्यूज अंतराष्ट्रीय दिवस के मौके पर आरक्षक द्रोपदी को उनके संघर्ष, समर्पण और जूनून के लिए सलाम करता है।