अगर उंगली में एक काँटा भी लग जाये तो हम कराह उठते है लेकिन हम आपको ऐसे लोगों के बारे में बता रहे है जो कांटो से इस तरह खेलते हैं मानों गुलदस्तो से खेल रहे हों. ये लोग कांटो को सिर्फ अपने हाथो से पकड़ते ही नहीं कांटो पर लोटते हैं और उन पर सोते भी हैं. ये तस्वीरें एमपी के बैतूल की हैं जहां सेहरा गाँव में रहने वाले रज्जढ़ समुदाय के लोग अपने आप को पांडवो के वंशज मानते है. पांडवो के ये वंशज हर साल अगहन मास में जश्न मानते है, दुःख जताते है और कांटो पर लोटते है. यहाँ के लोगों की अपनी मनोकामनाएं भी होती हैं. कोई संतान सुख चाहता है तो कोई धन धान्य और प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए यहाँ पहुचता है. लोग इसे अंधविश्वास तो मानते है लेकिन इसे समाज की परंपरा बताकर आस्था का सम्मान भी करते है.आधुनिक युग में इन परम्पराओं को मिथक के अलावा कुछ नहीं माना जाता. डाक्टर काँटों पर लेटने की इस परंपरा को जानलेवा और घातक बताते हैं. डाक्टरों के मुताबिक काँटों के चुभने से त्वचा सम्बन्धी रोग तो हो ही सकते है टिटनेस जैसे जानलेवा रोग का भी सामना करना पड़ सकता है। फिर भी परंपरा के नाम पर खुद को लहू लुहान करना इनका शौक और इनकी ख़ुशी बन गई है
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