कभी घर से निकलने में भी डरती थी महिला आज टॉर्चर हुई महिलाओं की बनी मसीहा |


 

 

हम बात कर रहे हे उतरप्रदेश के वसंतकुंज की अमेठी तहसील के छोटे से गांव पीपरपुर में जन्मी रेखा सिंह की उनके पिता पॉलिटिक्स और मां घरेलू कामों में व्यस्त रहतीं। वह पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर थी बचपन में मैं इतनी शांत और शर्मीली थी उन्हें बीएस घर और मां के आसपास रहना पसंद था। इसके इतर अकेले कहीं जाने के नाम से घबराने लगती रेखा सिंह बताती हैं, मेरी 12वीं तक की पढ़ाई गांव से हुई। जब ग्रेजुएशन की बारी आई तो पापा ने अमेठी के एक हॉस्टल में डाल दिया ताकि मैं अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकल सकूं, लेकिन मैं अकेले जाने के नाम से रोने लगी। इसके बाद मेरी दीदी को मेरे साथ हॉस्टल भेजा गया। दीदी एमए कर रहीं थी और मैं बीए। लास्ट ईयर में मेरा फिर से रोना शुरू हो गया। इसके बाद पापा ने मेरी छोटी का एडमिशन उसी कॉलेज में करा दिया। साल 2001 में एमए की पढ़ाई पूरी करते ही शादी हो गई। साल 2002 में पति के साथ दिल्ली आ गई। पति को अपने काम के सिलसिले में बाहर जाना पड़ता था। इस दौरान मुझे घर में बैठकर उब होती थी, जिससे निकलने के लिए मैंने एचआईवी एड्स एंड फैमिली एजुकेशन का छह महीने का कोर्स किया। जॉब ज्वाइन करने के बारे में सोच ही रही थी, तभी एक बेटे की मां बन गई।साल 2007 की बात है। पति को एक साल के लिए जर्मनी जाना था। बेटे ने भी स्कूल जाना शुरू कर दिया था। मैंने भी बच्चों और महिलाओं के लिए काम करने वाली एक संस्था से जुड़ गई। इस दौरान में दिल्ली के अलग-अलग एरिया में जाती, वहां बच्चों और महिलाओं से मिलती। इसी दौरान में कई घरेलू कामगार महिलाओं से मिली। उनके साथ गाली-गलौज, मारपीट और शोषण यह सबके लिए आम बात होगी, लेकिन कई बार मैं घर आकर सो नहीं पाती थी। उनकी स्थिति मुझे परेशान करती थी। हालांकि, 2011 में जाॅब छोड़कर घर परिवार संभालने लगी। इस दौरान मैंने लाइब्रेरियन का कोर्स और बीएड की पढ़ाई भी पूरी कर ली।साल 2019 में जब बेटा 9वीं में आ गया तो मैंने सोचा कि अब 4 साल बाद यह पढ़ाई के लिए बाहर चला जाएगा। तब मैं फिर घर पर अकेले हो जाउंगी। यही सोचकर अपने पुराने साथियों को ढूढ़ा और घरेलू कामगारों का एक राष्ट्रीय गठबंधन (NADW) बनाया। यह संगठन घरेलू कामगार महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ रहा रहा है।मैंने देखा कि घरेलू महिलाएं अपने घर-परिवार और पति से टॉर्चर होती हैं। जिन घरों में काम करती हैं, वहां चोरी और मर्दों को फंसाने के आरोप, मारपीट, गंदी-गंदी गालियों और यौन शोषण की शिकार भी होती हैं। अपनी मजबूरी के चलते वे किसी को ये बता नहीं पाती हैं। वरना काम कराने वाले पगार भी नहीं देते और उल्टा इन पर ही केस फाइल करवा देते हैं। हमारा अलायंस ऐसी ही महिलाओं की मदद करता है। कई बार मालिक समझाने पर मान जाते हैं तो कई दफा पुलिस की मदद भी लेनी पड़ती है।आज मेरे पति-बेटा और परिवार वाले लोग काफी खुश हैं। उनका कहना है कि परिवार में कोई तो है, जो रोटी, कपड़ा और मकान की चिंता छोड़ किसी और के बारे में सोच रहा है। इस सबमें मेरे पति ने बहुत सपोर्ट किया। कई केस ऐसे आए, जिनमें मैं भी डर रही थी, लेकिन वह साथ खड़े रहे, हिम्मत दी और फाइनली मैंने उन मुश्किलों का भी हल निकाल लिया। पापा अब फिक्र नहीं फक्र करते हैं।


By - sagartvnews

09-Aug-2022

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